Ibrahim Pathan : महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिलेमें नेवासा तालुका के एक देहात जिसका नाम है सलाबतपुर | इस गावमें पोस्टमास्टर जिनका नाम फ़त्तुभाई पठाण था | उनके कुल आमिना, अय्यूब, जैनाबी और इब्राहिम ऐसे २ लड़के और लड़कियां थी | यह पोस्टमास्टर बोहत ईमानदार होने के वजह से कोई भी गलत काम नहीं करते थे जिसके चलते |
वह आपने परिवार का २ वक्त की रोटी ही दे पाते थे | इस लिए उनका समाज में ईमानदारी और मेहनत के वजह से प्रसिद्ध थे | वह पोस्टमास्टर की जॉब करते हुए मिस्तरी का भी काम करते थे | इसी के साथ वह धार्मिक वृत्ति के होने के वजह से समाज प्रबोधन का काम भी करते थे | उसे गांव में मिलाद भी कहते है |
Ibrahim Pathan : उनका साथ देने के लिए उनके मित्र भी थे | उनके बच्चे बोहत अच्छे से जिरहे थे | कुछ सालोंके बाद उनके दोनों लड़कियों की शादी हो गई | फिर दोनों लड़के अब स्कुल में जाते थे | पर पैसे की कमी के वजह से वह स्कुल पढ़ते हुए खारी (बेकरी प्रोडक्ट) बेचा करते और आगे की पढाई जारी रखी पर काम करते हुए उनको पढ़ाई में वह टाइम नहीं दे सके और उन्होंने थोड़े दिन के बाद गांव में एक-एक पान की दुकान खोलदी |
जो गांव के बीचोबीच थी जो अच्छी चलने लगी और फिर उन्होंने कारोबार को आगे बढ़ाते हुए घर पर ही एक किराना दुकान शुरू की और घर को भी अच्छे से बनवाया |
Ibrahim Pathan : दोनों भाई जुड़वाँ भाई जैसे ही दीखते थे | दोनों भी बोहत ईमानदार और मेहनती होनेसे गाँव में दोनों की बोहत इज्जत थी | आगे चलकर उन दोनों की शादी करादि गई और कुछ सालामें उनका परिवार फूल के बगीचे के तरहा महकने लगा और उनके यहां आय्युब भाई और इब्राहिम भाई के यहां बच्चोसे परिवार हसीखुशी रहने लगा |
उनके बच्चे अब स्कुल में जाने लगे थे | मेट्रिक तक पढाई उनके बच्चोने की होगी तभी उनके भी बच्चोकी शादी होगी | और फिर कुछ सालो बाद पिता फ़त्तुभाई इनका इन्तेकाल हो जाता है | और फिर उनपर दुःखोंका पहाड़ टूट जाता है |
Ibrahim Pathan : कुछ महीनो बाद दोनों भाई मिलकर फरसाण का बड़ा बिज़नेस सुरु करते है जो की बोहत कामयाब होता है | और उसकी ओनर शिप यह Ibrahim Pathan इनके तरफ होती है | फिर वह अपने फरसाण को नेवासा तालुका में अलग अलग जगह पर जाकर बेच कर आते थे | वह दोनों भाई ने अपने परिवार को बोहत आगे लेकर आये बच्चों की पढ़ी पूरी कराई और उनकी शादियां भी कराई उनके भी बच्चों के संभालकर उनको भी हमेशा मदत की |
फिर आगे चलकर Ibrahim Pathan भाई ने अपने करोबार को आगे बढ़ाते हुए गांव में एक फरसाण की दुकान शुरी की | और उनका बोहत अच्छे से व्यवसाय चलने लागा | दुकान पर अगर कोई छोटे बच्चे आते उनके पास फरसाण खरीदने को पर्याप्त पैसे न होने पर भी वह उनको फरसाण देते थे |
Ibrahim Pathan : बजार में अगर कोई भूखा होता तो उनको भी अपने खानेमेंस कुछ उनको देते थे | लोग बाजू के दुकान में फरसाण खाकर इनके वहां पानी पिने आते थे | तभी वह कभी मना नहीं करते थे | उनको बाजार में सब भाई कहते ते |
वह ईमानदारी इतनी थी क्या उनका बाजार में इतना विश्वास करते थे क्या उनके पास फल और सब्जी के बड़ी बड़ी गोनिया भी उनके दुकान पर रख क्र जाते थे | भूल जाने पर वही उनको वह याद दिलाते थे | कोई अगर परेशान हाल में उनके पास आता तो वह उन्हें कभी खाली हाथ नहीं भेजते थे | उनको कुछ पैसे दे देते थे |
Ibrahim Pathan :
अगर बाजार में कोई उनको कहता के पैसे अगले बार देंगे इसबार उधार फरसाण देदो तो उनको यह पता होता था की यह बाद में नहीं आनेवाला है पर फिरभी वः उनको फरसाण देतेहि थे | किसी की मदत के लिए हमेशा तैयार रहने वाले Ibrahim Pathan भाई का गांव और तालुके में अच्छा नाम होगया था |
उन्होंने जीरो मेंसे अपने व्यवसाय को बहुत आगे तक बढ़ाया | फिर अपने लड़के के पास सोनई में गए जहां उनके लड़का और बहु जॉब करते थे उनको एक लड़की थी जिसके चलते उन्होंने सब कुछ छोड़कर सोनई में रहने आगये फिर वह यहां पर बैठकर नहीं रहे | उन्होंने सोनई में भी अपने व्यापार को शुरू रखा पर बोहत मेहनत करने के बाद उनकी शरीर अब साथ नहीं दे पा रहा था | उनको शुक्रवार के शाम में उनको घरपर आने के लिए निकल गए उनका घरपर खाने के लिए पत्नी और लड़का राह देख रहे थे |
जब वह घरमें आये तब वह सलाम करने के बाद फ्रेश होकर आने पर सोफे पर बैठ गए और अचानक उनका पूरा समतोल बिगड़ गया और वह दीवार पर उनका सर लग गया | अचानक हार्ट अटैक आने से उनको और उनके परिवार को समझ में नहीं आरहा था की क्या करे |
ऊपर से निचे घरमालक और बाजू में पोलिस मामा के जरिए उन्हें उनके ही चारचाकी में लेकर उन्हें दवाखाने में लेकर गए | और कोई सुविधा न होने के उन्हें अहमदनगर को लेजा ने की सलाह डॉक्टर ने दी और कहा इनको जल्द से जल्द बड़े दवाखाने में लेजाओ | रातमें हमे कुछ भी समझ नहीं आरहा था के क्या करे |
फिर भी हम १०८ में लेजाने लगे और रास्ते में उन्हें बोहत तकलीफ हो रही थी | पर १०८ का डॉक्टर कुछ भी नहीं कर पा रहा था | अब उनको अटैक और हुआ फिर उनको साँस लेने में दिक्क्त आने लगी | मैंने अपने मुंह से सांस दी पर कोई फायदा नहीं हुआ | और १०८ के देरी से न आने के कारण हम ठीक समय में हॉस्पिटल नहीं पोहोच सके और अहमदनगर के स्वस्तिक चौक तक पोहचने पर उनका स्वर्गवास होगया |
एक मेहनत करने वाला हर इंसान लिए उनका दिल साफ़ नरम था | इसलिए वह हमेशा अपने माँ को कहते थे की, जिन्दा है जबतक जो खाना है मांगलो मरने पर कोई दसवा चालीसवाँ नहीं करूंगा | ईमानदार, समाजसेवक, जो हमेशा लोगों की मदत करता था, लोगों को हमेशा सलाम करना छोटे हो या बड़े, रास्तमेँसे तकलीफ देनेवाली चीज को हटाना | यह मोहम्मद पैगम्बर की सिख होने के वजह से वह अमल में लाते थे |
कोई जातिवाद न था निकम महाराज के भाई कहते थे उनके साथ भजन को भी जाते थे | फिर जमात में इस्तेमा में खिदमत में हर वह नेक काम जो अल्लाह को पसंद थे | वह उन्होंने किये थे | आज उनको दुनिया से गए हुए ८ साल हो गए इसलिए उनकी याद में आज यह दिल से लिखा हुआ यह लेख है |