Baitul Muqaddas : ‘ताबुते सकीना’ की जानकारी – जावेद शाह फ़कीर की ज़ुबानी…
Baitul Muqaddas : किब्ला क्या है ? सबसे पहले ये जानिए….
हज़रत आदम अलै0 से लेकर हजरत मूसा अलै0 तक नमाज (इबादत) पढ़ते वक़्त चेहरे का रुख यानि क़िब्ला क़ाबा शरीफ़ की तरफ़ रहा। उसके बाद हज़रत मूसा अलै0 से लेकर प्यारे नबी (17 माह) तक क़िब्ला बैतूल मुकद्दस रहा। यानि बैतूल मुक़द्दस भी क़िब्ला था। ये इबादतगाह (पुराना क़िब्ला) दरअसल एक मुक़द्दस चट्टान है।
हजरत दाऊद चाहते थे यहाँ एक आलीशान इबादतगाह बने । उनके ख्वाब को साकार करने के लिए उनके बेटे सैयदना सुलैमान अलै0 ने उस चट्टान के ऊपर एक इबादतगाह (हैकल) बनवाई।
Baitul Muqaddas : जिसे हैकल-ऐ-सुलेमानी कहते है। जिसका अर्थ है- पवित्र घर ।
- बैतूल मुक़द्दस (यरूशलम) और बैतुल्लाह (मक्का) दोनों अल्लाह के घर हैं।
- दोनों का भी का मतलब यह है के वह एक पवित्र घर है और दुसरोंका का मानना है के वह अल्लाह का घर हैं।
- सोचिए कितनी अज़ीम निशानी है बैतूल मुक़द्दस।
जब हजरत सुलैमान अलै0 बैतूल मुक़द्दस तामीर करवा रहे थे उसी दरमियाँ उनका इंतकाल हो गया। तामीर के बाद यहूदियों ने ‘ताबुते सकीना’ उसमें रख दिया। सारे यहूदी बैतूल मुक़द्दस में रखे ताबुते सकीना की ज़ानिब मुँह करके नमाज/इबादत करने लगे। इस तरह ये यहूदियों की मुक़द्दस जगह बन गया।
Baitul Muqaddas : अब जानिए क्या है ? ताबूत-ऐ-सकीना –
ताबूत का अर्थ संदूक है और सकीना का अर्थ सुकून है। यहूदी लोग इस मुबारक संदूक को बहुत पसंद करते थे। जैसे यहूदी जेहाद पर जाते समय डर से पसीने छूटने लगते थे जब वे दुश्मनों की संख्या देखते थे। यहाँ तक कि उन्हें दुम दबाकर भागना पड़ा। उसने इस संदूक को सबसे आगे रखते हुए नारे लगाए।
अल्लाह इस संदूक की बरक़त से यहूदियों की मदद करने के लिए आसमान से फरिश्तों की फ़ौज भेज देते। आसमान में ‘ईजा ज-आ नसुरुल्लाही-वल फ़तहूँ क़रीब’ की सदाएं गूंजने लगती। चारों ज़ानिब शांत हो जाते। डरपोक यहूदियों के ज़िस्म में रूहानी ताक़त आती जब वे आयात की खबर सुनते और इस ताबूत की बरक़त सुनते। इस संदूक या ताबूत को सुकून देने के लिए ‘ताबुते सकीना’ कहा जाने लगा।
ताबूत-ऐ-सकीना में क्या रखा था? –
ये शमशाद की लकड़ी का बना हुआ एक संदूक था, जिसकी लम्बाई चौड़ाई तकरीबन 40 बाय 40 फीट थी| ये मुक़द्दस संदूक हजरत आदम अलै0 पर नाज़िल हुआ था। इसमें आने वाले तमाम अम्बियाओं (नबियों) के हुलिए मुबारक (तस्वीर) थे जैसे प्यारे नबी सल0 का हुलिया मुबारक़ भी इसमें महफूज़ था |
हजरत आदम अलै0 का आसा (लाठी) जिसे वो जन्नत से लाये वो भी इसी में रखा हुआ था | ये आख़िर तक आपके पास ही रहा | बतौर मिराज ये एक के बाद एक आपकी औलादों को मिलता रहा | हजरत इब्राहीम से होता हुआ उनके बेटे मदयन फिर उनके वंशज हजरत शुऐब अलैहिस्सलाम तक पहुंचा।
हजरत शुऐब ने ये आसा बकरियाँ चराते वक़्त हजरत मूसा के हवाले कर दिया जो उनके दामाद थे। बाद में ये ताबूत भी हज़रत मूसा को मिला। मूसा के बाद उनका आसा (लाठी) भी संदूक में रख दिया गया। दूसरी तरफ ये ताबुते सकीना हजरत इब्राहीम की दूसरी औलाद हजरत इसहाक से उनके बेटे हजरत याकूब अलै0 को मिला |
हजरत याकूब के पास हजरत इब्राहिम अलै0 का जन्नती कुर्ता और अपने वालिद हजरत इश्हाक़ का कमरबंद (बेल्ट) भी था | इस तरह ये सभी निशानियां इसमें जमा होती रही। हज़रत शुऐब अलैह0 हजरत मदयन के बेटे थे जो हजरत इब्राहीम की औलाद थे। उनके बाद ये ताबूत हज़रत शुऐब के दामाद हजरत मूसा अलै0 को मिल गया |
मूसा अलै0 इसमें तौरात शरीफ के नुस्खे और अपना खास-ख़ास सामान रखने लगे | चूंकि ताबूत बहुत बड़ा और शमशाद की लकड़ी का बना हुआ था अल्लाह की क़ुदरत से हज़ारों बरस सही सलामत रहा।
ना सड़ा-ना गला। उसमें आपकी जूतियाँ और बड़े भाई हजरत हारून नबीयना और हजरत युसूफ अलै० का अमामा शरीफ भी था. आसमान से उतरने वाला खाना मन-ओ-सलवा भी एक बर्तन में रखा गया था. सुब्हान अल्लाह, ये बहुत बड़ा मुक़द्दस और बा-बरकत था।
इस ताबूत का जिक्र कुरआन शरीफ में पारा नंबर 2 (सय्कुल) आयात नंबर 248, रुकू नं0 16 पर है| बनी इस्राइल में जब भी कोई मसला पैदा होता तो लोग इस संदूक से फैसला करते | करामत ये थी कि संदुक से फैसले की आवाज़ और फ्यूचर में होने वाली फतह की बशारत भी बनी इस्राईल को सुनाई देती |
Baitul Muqaddas : ताबूत-ऐ-सकीना से कैसे फैज़ हासिल करते थे? –
बनी इस्राइल इस संदूक को अपने आगे रखकर इसमें रखी पाकीज़ा चीजों को वसीला बनाकर दुआ मांगते उनकी दुआएं मकबूल हो जाती और आने वाली बलाएँ, बीमारियां और मुसीबतें टल जाया करती | यानी नबी इस्राइल के लिए ताबुते-सकीना बरकत, रहमत का खजाना और अल्लाह की मेहरबानियों का मुक़द्दस ज़रिया था |
Baitul Muqaddas : ताबुते सकीना हज़रत मूसा तक कैसे पहुंचा? –
ये तो आपने पढ़ लिया । हजरत मूसा के बाद ताबूत का क्या हुआ?
मूसा अलै0 के बाद बनी इस्राइल 72 फिरकों में बंट गई। कौम तरह–तरह के गुनाहों में मुब्तिला हो गई तब अल्लाह का बनी इस्राइल पर अजाब नाजिल हुआ कि उन लोगों पर बनी अमालका नामक एक काफिर कौम ने हमला कर दिया | इन काफिरों ने बनी इस्राइलों को मार डाला, यरूशलम को जमींदोज कर दिया और उनके घरों से ताबुते सकीना छीन लिया।
उस वक़्त तक ताबूत को बनी इस्राइल एक गाड़ी पर रखकर लिए-लिए फिरते थे। काफिर कौमे अमालकाने ताबुते सकीना की अहमियत को नहीं समझा इस मुक़द्दस ताबूत को लूटकर ले गए उन लोगों ने अपने देश ले जाकर एक कूड़ेखाने में ताबूत को फेंक दिया | ताबुते सकीना की बे-अदबी करने पर अल्लाह ने कौमे अमालका के देश में तरह-तरह की बीमारियाँ भेज दी | वहां के लोग बवासीर से पीड़ित हो गए और जहां-देखों वहां चूहें ही चूहें नज़र आने लगे |
जिससे वहां प्लेग (ताऊन) फ़ैल गया | करीब पांच बस्तियां इस बिमारी से साफ़ हो गई | अज़ाबों का सिलसिला देखकर कौमे अमालका के बादशाह को यकीं हो गया कि ये बला उस संदुक की बेअदबी की वजह से आयी है | चुनांचे उन लोगों ने इस मुक़द्दस संदुक को एक बैलगाड़ी पे लादकर बनी इस्राइल की बस्ती (यरूशलम) की तरफ हांक दिया |
अल्लाह ने फौरन चार फरिश्तों को मुकर्रर फरमा दिया जो इस मुक़द्दस संदुल को बनी इसराइल के नबी हजरत शमूईल की खिदमत में ले आए | ये वाकिया कुरआन मजीद में तफ़सील से लिखा है। इस तरह फिर बनी इसराईल को उनकी खोई हुई शान और नियामत दौबारा मिल गई |
ये संदुक हजरत शमुइल अलै0 के पास ठीक उस वक्त पहुंचा जब आप हजरत तालुत को बनी इसराइल का सरदार (बादशाह) बनाने के लिए बनी इस्राइल को समझा रहे थे। लेकिन बनी इज़राइल हजरत तालुत को बादशाह मानने पर तैयार नही थे। आख़िर उनमें यही शर्त ठहरी थी कि ताबुते सकीना अगर उन्हें मिल जाए तब हम तालुत की बादशाहत तस्लीम कर लेंगे |
चुनांचे संदूक आ गया और बनी इसराईल हजरत तालुत को बादशाह मानने पर राजी हो गई | तालुत के बादशाह बनने के बनी इस्राईल का सामना जालुत नाम के एक जालिम बादशाह से हुआ जिसने बैतूल मुक़द्दस शहर पर कब्ज़ा कर रखा था। बैतूल मुक़द्दस को फतेह करने के लिए जालूत को मारना जरूरी था।
17 बरस के एक नौजवान ने बनी इस्राइल को निजात दिलाई यानि उन्होंने जालूत को मौत के घाट उतार दिया। तालुत ने वादे के मुताबिक़ अपनी बेटी की शादी उस लड़के से कर दी और आधी बादशाहत भी उसे दे दी | इस तरह ताबुते सकीना भी उस लड़के को मिला।
Baitul Muqaddas : क्या आप जानते है वो नेक लड़का कौन था? –
जी हाँ ! वो थे बैतूल मुक़द्दस की तामीर का ख़्वाब देखने वाले हजरत दाउद अलै0 | हजरत दाऊद ने यरूशलम पर 30 बरस हुकूमत की आपकी दिली ख्वाहिश थी कि ताबुते सकीना को महफूज़ रखने के लिए एक मुक़द्दस इमारत बनाए | आपने उस इमारत को बनाने के लिए जगह भी पसंद फरमाई |
आपके बेटे हजरत सुलेमान अलै० ने अल्लाह की आज्ञा से उसी स्थान (चट्टान) पर जिन्नातों की मदद से एक मस्जिद बनाई, जो सात साल तक चलती रही. हजरत सुलेमान ने इंसानों, जिन्नों, पशुओं, हवाओं और एक जादुई अंगूठी में अपनी पूरी शक्ति रखी।
जिसे आप हमेशा पहना करते और आपके गले में एक तावीज़ था जिस पर आने वाले नबी हजरत मोहम्मद स0अ0स0 का नाम ‘एहमद’ गुदा हुआ था | आपकी ये जादुई अंगूठी भी इस ताबूत में रख दी गई | इसी मस्जिद में एक ख़ास और मुक़द्दस जगह पर ताबुते सकीना को रखा गया जिसकी तरफ मुंह करके यहूदी इबादत करने लगे |
ये मस्जिद बाद में हैकल सुलैमानी से मक़बूल हुई | इसके आसपास बहुत से पैगम्बरों की मज़ार और पैदाईशी मुकाम भी हैं | हजरत आदम से लेकर प्यारे नबी तक तमाम नबियों ने यहां रसूले पाक की इमामत में नमाज भी अदा की है।
ये ताबूत जिस मुकदस चट्टान पर रखा था वहां आज गुम्बदे सखरा यानी DOME OF THE ROCK है | जिसकी तरफ मुंह करके शुरूआती 17 महीने प्यारे नबी ने नमाज पढाई और यही से मेराज की |
Baitul Muqaddas : ये हमारा क़िबला –ऐ –अव्वल है | –
इसी मुक़द्दस चट्टान के नीचे बतौर निशानी मस्जिद आज भी बनी हुई है | इसी चट्टान पर हजरत सुलेमान भी इबादत किया करते थे । यहाँ प्यारे नबी हजरत मोहम्मद स0अ0स0 ने भी नमाज़ पढ़ी । यही पर मरियम बिंते इमरान ने इबादत की जहाँ उनके लिए खाना आसमान से आता था। इसका जिक्र भी क़ुरआन में है।
Baitul Muqaddas : लिहाज़ा ये जगह ईसाइयों के लिए भी खास हो गई। –
हजरत सुलेमान के बाद उनके बेटों में यरूशलम बंट गया और नबी इस्राइल में ना-इत्तेफाकी बढ़ने लगी | बनी इस्राइल एक अल्लाह की इबादत छौड़कर हैकले सुलेमानी में पूजापाठ करने लग गए | नतीज़न दोबारा बनी इस्राईल पर अल्लाह का कहर बरसा | ईसा से 600 बरस पहले बाबुल के बादशाह बखते-नसर ने यरुशलम और हैकले सुलैमानी को जमीन में मिला दिया |
कुछ बरस बाद हजरत उजैर के बाद वापस इसकी तामीर हजरत ज़ुलकरनैन ने करवाई फिर टाईटस (रोमनों) ने इसे तीसरी बार जमींदोज़ कर दिया और हैकले सुलैमानी के खजाने और ताबुते सकीना को लुट लिया | इसके बाद से ताबुते सकीना का आज तक पता नही चला ।
Baitul Muqaddas : अब कहाँ है? ताबुते सकीना। –
फिल्हाल ताबुते सकीना ग़ायब है या लोगों की नज़रों से ओझल है। हजरत इमाम मेहंदी ने ताबुते सकीना में हजरत मुसा की लाठी (आसा) और हजरत सुलेमान की अंगूठी से मोमिन और काफिर को अलग-अलग पहचान करके उनकी पेशानी पर निशान लगाया जब कयामत आने वाला है।
मोमिन की पेशानी पर “हाजा मोमिन हक्का” और काफिर की पेशानी (माथे) पर “हाज़ा काफिर” छप जाएगा | (इरशाद उत-तालेबीन पेज नंबर 400 कयामतनामा) अल्लाह मुझे और आपको ज़िन्दगी में एक बार काबा शरीफ और मस्जिदे नबवी के साथ बैतूल मुक़द्दस की ज़ियारत कराएं | जहाँ अल्लाह ने बरकत दे रखी है | जिसने भी इस पोस्ट को आगे फॉरवर्ड/शेअर किया समझो उसने अल्लाह के मुक़द्दस घर की मालूमात दूसरों तक पहुंचाई और सवाब का हक़दार बनो |